कितना असरदार होगी 'वोट फॉर OPS' मुहिम

प्रदेश में चुनावी अखाड़ा पूरी तरह सज चूका है। आचार सहिंता लग चुकी है। सत्ता पक्ष अपने विकास कार्य गिना रहा है तो विपक्ष, सरकार की हर उस नाकामी को भुनाने का प्रयास कर रहा है जो भाजपा की डगर कठिन कर दे। कोशिश तो पूरी थी मगर इसके बावजूद भी प्रदेश के कुछ ऐसे मुद्दे है जो सरकार सुलझा नहीं पाई। ऐसे ही अनसुलझे मसलों में प्रदेश के कर्मचारियों का सबसे बड़ा मुद्दा भी शेष है। ये वो मुद्दा है जो सत्ता हिलाने की कुव्वत रखता है। हम बात कर रहे है प्रदेश के करीब एक लाख कर्मचारियों के सबसे बड़े मुद्दे, पुरानी पेंशन बहाली की। कर्मचारी किसी भी सरकार की रीढ़ होती है और जब कर्मचारी ही अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे है, तो ऐसे में किसी भी सरकार की डगर मुश्किल हो सकती हैं।
एनपीएस कर्मचारी महासंघ से जुड़े हिमाचल के एक लाख से अधिक कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली के लिए लगातार संघर्ष करते रहे परन्तु वर्तमान सरकार के राज में पुरानी पेंशन बहाल नहीं हुई। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के बैनर तले आंदोलन लगातार तीव्र होता गया। कर्मचारियों ने आचार सहिंता लगने तक क्रमिक अनशन भी किया और खुलकर 'वोट फॉर ओपीएस' का नारा दिया। तो कर्मचारी क्या भाजपा के मिशन रिपीट के लक्ष्य में सबसे बड़ी बाधा बनेंगे, ये सवाल फिलहाल बना हुआ है। निसंदेह सरकार के खिलाफ कर्मचारियों का ये प्रदर्शन विपक्ष में बैठी कांग्रेस के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकता है। उधर भाजपा बार-बार ये याद दिला रही है कि प्रदेश में नई पेंशन स्कीम कांग्रेस की वीरभद्र सरकार ने लागू की थी। अब कर्मचारियों का क्या रुख रहता है, ये देखना रोचक होगा। क्या एनपीएस कर्मचारी महासंघ के आह्वान पर प्रदेश का कर्मचारी 'वोट फॉर ओपीएस' मुहीम का हिस्सा बनेगा, इसी सवाल के जवाब में सम्भवः अगली सरकार की तस्वीर छिपी है।
गौरतलब है कि नई पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ द्वारा 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान चलाया जा रहा है, जहां कर्मचारियों को ओपीएस के नाम पर वोट देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। संघ की दो टूक है की जो भी पुरानी पेंशन बहाल करेगा वोट उसी को मिलेगा। जाहिर है पुरानी पेंशन बहाली का वादा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी कर रहे है, जबकि भाजपा अभी भी इस मुद्दे पर ढुलमुल रवैया अपनाएं हुए है। तो क्या भाजपा के मिशन रिपीट में 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान खलनायक की भूमिका निभा सकता है, या इस अभियान से व्यापक तौर पर प्रदेश का आम कर्मचारी दूर रहता है, इस पर निगाहें जरूर रहने वाली है।
हर मंच से वचन दे रही कांग्रेस
कांग्रेस के तमाम बड़े नेता बार -बार दोहरा रहे है कि सरकार बनने पर पहली कैबिनेट में ओपीएस बहाल होगी। हर मंच से इस बात को दोहराया जा रहा है। प्रियंका गाँधी की परिवर्तन प्रतिज्ञा रैली में उन्होंने भी पहली कैबिनेट में पुरानी पेंशन बहाली का वचन दिया। प्रियंका खुद क्रमिक अनशन पर बैठे कर्मचारियों से मिलने पहुंची और उन्हें आश्वस्त किया। ऐसे में क्या एनपीएस कर्मचारी महासंघ खुलकर कांग्रेस के लिए काम करेगा, ये देखना रोचक होगा। वैसे इसमें कोई संशय नहीं है कि यदि इनका 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान कामयाब रहा तो इसका स्वाभाविक लाभ कांग्रेस को हो सकता है। पर मूल सवाल ये ही है कि क्या 'वोट फॉर ओपीएस' मुहीम का बड़ा असर दिखेगा या प्रदेश का आम कर्मचारी अन्य मुद्दों को वोट का मुख्य आधार बनाएगा।
कांग्रेस दे रही राजस्थान-छत्तीसगढ़ का उदाहरण
देश के दो राज्यों में कांग्रेस शासित सरकार है, राजस्थान और छत्तीसगढ़। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस पुरानी पेंशन बहाल कर चुकी है। झारखंड में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और वहाँ भी पुरानी पेंशन बहाल हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस इन तीन राज्यों का हवाला देते हुए पुरानी पेंशन बहाल करने का वादा कर रही है। पार्टी का कहना है कि यदि वो सत्ता में लौटी तो पहली कैबिनेट में पुरानी पेंशन बहाल होगी। प्रियंका गाँधी ने भी अपनी परिवर्तन प्रतिज्ञा रैली में इसका जिक्र किया।
जयराम देते रहे है आर्थिक हालात का हवाला
वैसे आपको याद दिला दें की भाजपा के 2017 विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी ये कहा गया था कि सरकारी विभागों में कर्मचारियों की पेंशन हेतु केंद्र सरकार से परामर्श के लिए सीएम की अगुवाई में पेंशन योजना समिति का गठन किया जाएगा। समिति तो बनी मगर कर्मचारियों को पुरानी पेंशन नहीं मिल पाई। दरअसल इस योजना को लागू करने के लिए एकमुश्त दो हजार करोड़ रुपये चाहिए और हर माह 500 करोड़ की जरूरत होगी। जयराम सरकार ने कई बार ये स्पष्ट किया कि फिलवक्त प्रदेश के आर्थिक हालात ऐसे नहीं है कि पुरानी पेंशन लागू की जा सके। हिमाचल सरकार अपने बलबूते ओल्ड पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि राज्य का राजकोष केंद्र सरकार से मिलने वाले रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर चलता है।
'आप' ने भी किया वादा
आम आदमी पार्टी ने भी प्रदेश में ओपीएस बहाल करने का वादा किया है। बीते दिनों पार्टी में घर वापसी करने वाले वरिष्ठ नेता डॉ राजन सुशांत तो इस मुद्दे पर लम्बे समय से खुलकर बोलते रहे है। ऐसे में यदि कर्मचारी ओपीएस के नाम पर वोट करता है तो उसके पास आम आदमी पार्टी भी एक विकल्प होगा।
जाने आखिर NPS का विरोध क्यों करते है कर्मचारी
साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। कुछ ही समय बाद हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी सरकारी क्षेत्र में नियुक्त होने वाले कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम बंद कर नई पेंशन स्कीम लागू कर दी गई। शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब NPS का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। दरअसल एनपीएस कर्मचारी के अंतिम मूल वेतन के मुताबिक न्यूनतम पेंशन की गारंटी नहीं देती। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और DA जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इक्कठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशि को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानि पेंशन का कोई तय राशि नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने PFRDA नाम की एक संस्था का गठन किया है। कर्मचारियों का कहना है की उनका पैसा बाजार जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज़्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जोकि मृत्यु के बाद कर्मचारी की पत्नी को भी मिला करती थी।
NPS अच्छी है तो माननीयों के लिए क्यों नहीं !
मई 2003 के बाद से माननीय (सांसद व विधायकों ) को तो पेंशन का लाभ मिल रहा है, जबकि सरकारी कर्मचारी को एनपीएस का झुनझुना थमा दिया गया है। यदि यह योजना इतनी बढ़िया है तो सांसद व विधायकों को भी पेंशन के स्थान पर एनपीएस का ही लाभ देना चाहिए। यदि एक नेता पहले विधायक हो और फिर लोकसभा का चुनाव लड़े और सांसद बन जाए तो उसे दोनों तरफ से पेंशन मिलती है। इस देश में ये सुविधा सिर्फ और सिर्फ नेताओं को ही उपलब्ध है।
क्या एनपीएस कर्मचारी महासंघ को हल्के में लेने की भूल कर बैठी भाजपा ?
जयराम सरकार ने प्रदेश के कर्मचारियों की कई मांगे पूरी की। पर पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा हमेशा भाजपा के गले की फांस बना रहा। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के बैनर तले ये मांग आहिस्ता-आहिस्ता आंदोलन का रूप लेती गई। विशेषकर पिछले दो साल में एनपीएस कर्मचारी महासंघ से काफी कर्मचारी जुड़ते गए। दूसरी ओर प्रदेश कर्मचारी महासंघ अध्यक्ष अश्वनी ठाकुर की अगुवाई में सरकार के साथ कदमताल करता चला। क्या भाजपा के रणनीतिकारों ओर निष्ठावानों ने एनपीएस कर्मचारी महासंघ को हल्के में लेने की भूल की, ये सवाल माहिरों के जहाँ में जरूर है। हालांकि इसका फैसला को चुनाव के नतीजे ही करेंगे। एनपीएस कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर इस वक्त प्रदेश के प्रभवशाली कर्मचारी नेताओं में शुमार है। यदि इनका 'वोट फॉर ओपीएस' अभियान सफल रहा तो निसंदेह बतौर कर्मचारी नेता प्रदीप ठाकुर का रुतबा भी बढ़ेगा।
एनपीएस के क्रमिक अनशन में शामिल हुईं प्रियंका गांधी
परिवर्तन प्रतिज्ञा महारैली से पहले प्रियंका गांधी 14 दिन से पुरानी पेंशन बहाली को लेकर क्रमिक अनशन पर बैठे कर्मचारियों से मिली। वह कर्मचारियों के अनशन में शामिल हुई और न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के 'वोट फॉर ओपीएस का समर्थन' किया। उन्होंने कर्मचारियों को आश्वासन दिया कि कांग्रेस सरकार बनते ही पुरानी पेंशन योजना लागू की जाएगी। न्यू पेंशन स्कीम के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर भी मौजूद रहे। न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के पदाधिकारी ओल्ड डीसी कार्यालय के बाहर पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली को लेकर क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष अशोक ठाकुर ने कहा कि बार-बार पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर पत्र लिखे जा रहे हैं, लेकिन कोई निर्णय नहीं ले रही। छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड में सरकार ने कर्मचारियों की मांग को मान लिया है। 1,35,000 कर्मचारी प्रदेश भर में हैं। करीब 10,000 कर्मचारी उसमें सोलन जिले के हैं। अब एसोसिएशन ने निर्णय लिया है कि उसी पार्टी को वोट दिया जाएगा, जो ओल्ड पेंशन की बहाली करेगी।